समाज में भेदभाव का सामना हमेशा से करना पड़ा है। भेदभाव में सामाजिक बदलाव की जरूरत अभी और है।सबसे ज्यादा भेदभाव लिंग भेद और स्किन कलर को लेकर है। भेदभाव शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से संभव है और लोग करते भी हैं ।भेदभाव की समस्या की बात करें तो शुरुआत इसकी घर से ही होती है। घर से भेदभाव की शुरुआत बेहद मानसिक पीड़ा दायक होती है ।मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। हमारा समाज अब कहता है लड़का लड़की सब एक है लेकिन व्यावहारिक रूप से आप देखो तो कथनी और करनी का अंतर घर से भेदभाव का शुरू होता है। हर घरों की बात नहीं लेकिन कुछ घरों में आज भी भेदभाव बेटों और बेटियों में किया जाता है।

बेटियों को समाज दूसरे की अमानत मानकर बेटों को अहमियत देता है। भेदभाव तो निश्चित ही किया जाता रहा है। आज सोच बदली है लेकिन पूर्णतया नहीं ।मां, पिता की देखरेख बेटियाँ क्यों नहीं कर सकती? दो घरों को संभाल कर रखना बेटीयों को आता है ।बस साथ की जरूरत होती है हमारे समाज की। समाज भेदभाव ना करें तो बेटे, बेटियाँ सभी को समान अधिकार है।घर में भेदभाव करना उचित नहीं ।सोच बदली है लेकिन अभी भी चिंतन की आवश्यकता है। पारिवारिक जिम्मेदारियों में भेदभाव किया जाता रहा है। माँ, पिता, भाई ,बहन द्वारा भी भेदभाव किया जाता रहा है ।जिससे रिश्तो में कटास की बीज पड़ चुकी हुई होती है ।

भेदभाव का स्वरूप बदलता जा रहा है अब तो लिंग भेद और स्किन कलर से बाहर निकाल कर सफलतम व्यक्ति को भी अपना शिकार बना रहा है। अगर आप कमजोर हैं तब सब हँसते और मजाक बनाते हैं।आप पर फब्तियां कसी जाती हैं। जब आप अपनी मेहनत से सफल होते हैं तब भी आप को शिकार बनाया जाता है। समाज के कुछ चुनिंदा व्यक्ति द्वारा और इसतरह भेदभाव के शिकार होते ही रहते हैं। सफल हैं तब भी असफल है तब भी। समाज को सुधारने वाले पहले खुद सुधर जाए समाज व्यक्ति से ही होता है तो जाहिर है समाज खुद ब खुद सही हो जाएगा। भेदभाव को घर में मिटाने की कोशिश करें। सफल होने पर ईष्या नहीं बल्कि खुशी जाहिर करें। सफल व्यक्ति की मुश्किलें देखें समझें इस सफलता को पाने तक कितना कठिन संघर्ष तय किया होगा।

असफल अकेले व्यक्ति का मजाक नहीं बल्कि साथ दें। उनकी कमियों को बताएं, समझाएं ना की उन्हें अकेला छोड़कर भेदभाव करे।सफलता यूं ही नहीं मिलती हर सफल व्यक्ति के पीछे एक कड़वा सत्य होता है उसके संघर्ष का ,उसके अकेलेपन का जिसे वह दिल में छुपा कर आगे बढ़ता जाता है और सफल व्यक्ति की भी अपनी असफलता की कमियों को झेलने का संघर्ष छुपा होता है जिसमें वह अकेला जूझता रहता है। समाज मुकदर्शक बना रहता है। परिवार वालों को चाहिए भेदभाव ना करके सहयोग करें ।हर हमेशा साथ दें। समाज हमसे है तो हम बेहतर समाज बनाने में इस भेदभाव को तो मिटा ही सकते हैं ।क्या ख्याल है आपका तो चलिए एक कदम बढ़ाकर सभी का साथ देने का विश्वास लेकर भेदभाव को मिटाने का संकल्प लेते हैं। एक बेहतर समाज के लिए भेदभाव किसी में ना किया जाए एक विश्वास के साथ आगे बढ़ते हैं।  – मुम्बई, मीरारोड

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