कहा जाता है कि जो काम असम्भव है, वही काम राजनीति में सम्भव हो जाता है । हां, हमारे यहाँ ‘राजनीति’ इसी तरह का धन्दा हो गया है कि जहाँ असम्भव लगनेवाले बहुत से काम सामान्य रूप में हो जाते हैं । विशेषतः प्रमुख राजनीतिक पार्टी, नेता और उनके स्वार्थ से जुड़े हुए कोई भी काम हो जाते हैं चाहे फिर वो गैर कानूनी ही क्यों ना हो । शीर्ष कहलाने वाले नेताओं के बीच स्वार्थ मिल जाता है तो यहां धड़ल्ले से किसी भी प्रकार के अपराध को राजनीतिक रंग दिया जाता है, रातो रात संविधान और कानून में संशोधन भी हो जाता है । यहाँ तक कि संविधान और कानून बाधक बन जाता है तब भी सत्ता में रहनेवाले अध्यादेश लाकर भी तत्कालीन स्वार्थ पूरा करते हैं ।
विशेषतः माओवादी जनयुद्ध और मधेश आन्दोलन के नाम में कई अपराधपूर्ण कार्य को राजनीतिक रंग दिया गया है । जिसके चलते मानव हत्या जैसे अपराध में प्रत्यक्ष संलग्न व्यक्ति भी सांसद् और मन्त्री बन चुके हैं । यहाँ तक कि चुनाव जीतने के लिए बम फोड़नेवाले, ईट भट्ठों में झोंक कर नागरिकों को जिन्दा जलानेवाले व्यक्ति भी सांसद् और मन्त्री बन गए । नेपाली नागरिकों को भूटानी शरणार्थी बनाकर बेचनेवाले व्यक्ति भी यहाँ गृहमन्त्री बन चुके हैं । ऐसे अपराधपूर्ण कार्य करनेवाले व्यक्ति को भी यहां उच्च राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है । ऐसे चरित्रवाले बहुत ही कम संख्या में हैं जो सलाखों के पीछे होते हैं ।
ऐसे ही पृष्ठभूमि में एक नाम आता है– रेशम चौधरी का ! चौधरी दोषी हैं या नहीं ? राजनीतिक वृत्त में बहस जारी है, लेकिन अदालत ने उनको दोषी करार किया । वि.सं. २०७२ साल भाद्र ७ गते कैलाली जिला स्थित टीकापुर में हुई हत्याकाण्ड से जोड़कर उनका नाम लिया जाता है । आरोप है कि पुलिस उपरीक्षक (एसपी) लक्ष्मण न्यौपाने के साथ ८ सुरक्षाकर्मी और एक बालक की हत्या में उनकी संलग्नता है । अदालती फैसला में भी इस बात को पुष्टी की गई है ।
हत्याकाण्ड में उनकी संलग्नता को लेकर बहस होने के साथ ही चौधरी भूमिगत हो गए थे । चौधरी ने बारम्बार स्वयं पर लगे आरोप से इन्कार किया है । उन्होंने कहा है कि हत्याकाण्ड में उनकी संलग्नता नहीं है, आन्दोलन में घुसपैठ हुई है और घुसपैठियों ने ही उक्त हत्याकाण्ड की है । जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने यहां तक कहा है कि हत्याकाण्ड में जो लोग सहभागी हैं उन सभी के नाम उनके नाम पास हैं । चौधरी की माने तों सामाजिक सद्भाव के लिए वो दोषियों का नाम सार्जजनिक नहीं करना चाहते हैं ।
राजनीतिक यात्रा
एक समय था जब रेशम चौधरी को अधिक लोग पत्रकार, साहित्यकार, गीतकार, गायक आदि के रूप में जानते थे । थारु भाषा में प्रकाशित होनेवाला ‘जोग्गी’ साहित्यिक पत्रिका के वह प्रधानसम्पादक थे । रेडियो नेपाल, नेपाल टेलिभिजन, रेडियो सगरमाथा में रहकर उन्होंने पत्रकारिता भी की थी । बाद में कैलाली में उन्होंने अपना ही एफएम रेडियो की स्थापना की । मधेश आन्दोलन के बाद वह राजनीति के प्रति आकर्षित हो गए थे । मधेशवादी दल में आवद्ध होकर उन्होंने राजनीतिक यात्रा शुरु की थी । टीकापुर हत्याकाण्ड के बाद उनकी राजनीतिक यात्रा में पूर्णविराम लग गया ।
टीकापुर हत्याकाण्ड के बाद वि.सं. २०७४ मार्गशीर्ष में सम्पन्न आम चुनाव में चौधरी ने भूमिगत रूप में ही कैलाली निर्वाचन क्षेत्र नं. १ से उम्मीदवारी दी । तत्कालीन राष्ट्रीय जनता पार्टी की ओर से उन्होंने उम्मीदवारी दी थी । ३४ हजार से भी अधिक मत लाकर चौधरी सांसद् पद में विजयी हो गए । सांसद् पद में निर्वाचित होते हुए भी चौधरी भूमिगत जीवन ही जी रहे थे । मधेश आन्दोलन के बल पर विजयी नेता चौधरी के ऊपर ऐसी राजनीतिक खेल खेली गई, जहां एक समूह उनको हत्याकाण्ड का नायक मान रहे थे तो दूसरा समूह निर्दोष ! जो सत्ता में रहते थे, वह चौधरी को निर्दोष बताते हुए जेल से रिहा करने की बात करते थे, लेकिन जब वही व्यक्ति प्रतिपक्ष में चला जाता है तो उनको दोषी मानते थे । ऐसे ही विरोधाभास में सांसद् पद में निर्वाचित होने के १३ महीने के बाद वि.सं. २०७५ पौष १९ गते उन्हें सांसद् पद की शपथ दिलाई गई और सांसद् का लोगो लगाकर पुनः जेल भेजा गया ।
वि.सं. २०७५ साल फाल्गुन २२ गते पहली बार कैलाली जिला अदालत ने चौधरी को हत्याकाण्ड में दोषी मानते हुए उम्रकैद का फैसला सुनाया था । मुद्दा पुनारावेदन अदालत होते हुए सर्वोच्च तक आ गई, अन्ततः सर्वोच्च ने भी वि.सं. २०८० जेठ २ गते उनको दोषी करार किया । स्मरणीय है, वि.सं. २०७४ साल के बाद प्रधानमन्त्री बननेवाले तीन पात्र शेरबहादुर देउवा, केपीशर्मा ओली, पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’ ने अपनी सत्ता के लिए चौधरी को इस्तेमाल किया । अपने कार्यकाल में सभी प्रधानमन्त्री कहते थे कि रेशम चौधरी निर्दोष हैं, उन्हें जेल से रिहा किया जाएगा लेकिन उन्हें नहीं छोड़ा गया । लेकिन ८ साल में परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि उन्हें जेल से निकालने के लिए सत्ताधारी शक्ति बाध्य हो गई ।
जेल में रहते ही पत्नी रंजीता श्रेष्ठ चौधरी के नेतृत्व में नागरिक उन्मुक्ति पार्टी निर्माण, वि.सं. २०७८ में सम्पन्न स्थानीय, प्रदेशिक और संघीय चुनाव में पार्टी की सहभागिता आदि ने चौधरी राजनीतिक शक्ति के केन्द्र में स्थापित हो चुके थे । आज नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के पास ४ संघीय सांसद्, १२ प्रादेशिक सांसद् हैं । सुदूरपश्चिम प्रदेश में सरकार निर्माण के लिए नागरिक उन्मुक्ति पार्टी निर्णायक शक्ति है । हां, वर्तमान सत्ता गठबंधन को अपनी सत्ता बचाने के लिए नागरिक उन्मुक्ति पार्टी एक निर्णायक शक्ति है । ऐसी परिस्थिति में चौधरी को जेल से रिहा करवाना सत्ता के लिए बाध्यात्मक स्थिति है । परिणामतः वि.सं. २०८० जेष्ठ १५ गते संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल ने चौधरी को आम माफी दिया । फौजदारी कसूर में दोषी ठहर चौधरी ५ साल ३ महीना जेल रहने के बाद रिहा हो गए ।
सर्वसम्मत अध्यक्ष
वही चौधरी आज नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के सर्वसम्मति से अध्यक्ष बन गए हैं । कैलाली में सम्पन्न पार्टी के प्रथम अधिवेशन से चौधरी पार्टी अध्यक्ष बनेंगे, यह बात कम ही लोगों ने सोचा था । यहां तक की नागरिक उन्मुक्ति पार्टी से आबद्ध कई शीर्ष नेताओं को भी इसकी भनक नहीं थी । कहा जाता है कि निवर्तमान पार्टी अध्यक्ष तथा उनकी धर्मपत्नी रंजीता भी इस बात से बेखबर थीं । रंजीता को आश्वासन दिया गया था कि आगामी कार्यकाल में भी वही पार्टी अध्यक्ष बनेंगी । लेकिन अंतिम समय में आकर रेशम चौधरी ने अध्यक्ष पद पर मनोयन पंजीकरण किया तो सभी व्यक्ति चौंक गए ।
वर्तमान में रंजीता भूमि, सहकारी तथा गरीबी निवारण मंत्री भी हैं । उनकी भी चाहत थी कि मेरे नेतृत्व में निर्मित पार्टी ने वर्तमान शक्ति हासिल की है तो एक कार्यकाल के लिए मैं ही पार्टी अध्यक्ष बनूंगी । लेकिन ऐसा नहीं हो पाया । कहा जाता है कि रंजीता असन्तुष्ट होकर ही महाधिवेशन स्थल से काठमांडू लौट आई थी ।
महाधिवेशन से पार्टी के अन्य पदाधिकारी भी सर्वसम्मत से चयन हो गए हैं । प्रथम चरण में २५ सदस्यीय पदाधिकारियों का नाम सार्वजनिक किया गया था । लेकिन उस नामावली में निर्वतमान अध्यक्ष रंजीता का नाम नहीं था । जिसके चलते पार्टी में विवाद हो गया, परिणामतः रंजीता को जिम्मेदारी देने के लिए पार्टी विधान को ही संशोधन करने की तैयारी की गई है । वैसे तो पदाधिकारी में आकांक्षियों को समावेश करने के लिए आधी रात में पार्टी विधान संशोधन की गई थी, जिससे दो महासचिवों का चयन किया गया ।
कानूनी प्रश्न !
इस तरह रेशम चौधरी रातोरात पार्टी अध्यक्ष तो बन गए हैं, लेकिन उनके अध्यक्ष पद को लेकर कानूनी प्रश्न उठ रहा है । क्योंकि फौजदारी अभियोग में सजा पानेवाले व्यक्ति सार्वजनिक पद के लिए अयोग्य माने जाते हैं । राजनीतिक दल संबंधी ऐन की दफा १४ में राजनीतिक दलों में संबंद्ध सदस्यों की योग्यता का उल्लेख किया गया है । दफा १४ उपदफा ३ (ख) अनुसार भ्रष्टाचार, बलात्कार, मानव बेचबिखन, लागू औषध कारोबार, सम्पत्ति शुद्धिकरण, अपहरण, नैतिक पतन संबंधी फौजदारी कसूर में कैद सजा प्राप्त व्यक्ति राजनीतिक दलों के सदस्य नहीं बन सकते हैं । इसी तरह मुलुकी फौजदारी कार्यविधि संहिता २०७४ की दफा १५९ अनुसार भी चौधरी के ऊपर प्रश्न उठता है । इस विषय को लेकर कानूनी क्षेत्र में बहस जारी है ।
अध्यक्ष चौधरी ने दावा किया है कि निर्वाचन आयोग के पदाधिकारियों के साथ परामर्श करने के बाद वह पार्टी अध्यक्ष बने हैं । लेकिन निर्वाचन आयोग ने औपचारिक रूप में इस बात को अस्वीकार किया है । आयोग पदाधिकारियों ने कहा है कि महाधिवेशन सम्पन्न होने के बाद आयोग में पदाधिकारियों का नाम दर्ज करना होता है, उसके बाद ही इस विषय में कुछ कहा जा सकता है ।